Kaliya Naag Leela – कालिया नाग मर्दन लीला की सम्पूर्ण कथा
Kaliya Naag Leela – कालिया नाग मर्दन लीला की सम्पूर्ण कथा
भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में कालिया नाग मर्दन की कथा विशेष महत्व रखती है। यह लीला केवल एक नाग के दमन की घटना नहीं, बल्कि यह दर्शाती है कि जब संसार में अधर्म, भय और विष का प्रसार होता है, तब भगवान अपने भक्तों को मुक्ति देने के लिए किसी भी रूप में अवतार लेते हैं।
गोकुल और वृंदावन के लोग उस समय भयभीत थे, क्योंकि यमुना नदी, जो उनकी जीवनरेखा थी, कालिया नाग के ज़हर से दूषित हो चुकी थी। बच्चे, पशु-पक्षी और सारे ग्रामवासी उस नदी के जल को पी नहीं पाते थे। कोई भी उस नाग के प्रकोप के आगे टिक नहीं पाता था।
परंतु नंद के लाल श्रीकृष्ण ने बालक होते हुए भी यह साबित कर दिया कि उनके चरणों के नीचे हर विष का नाश निश्चित है।
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🔹 कथा का प्रारंभ – यमुना का विष और ब्रजवासियों की चिंता
कथा के अनुसार वृंदावन में यमुना नदी के एक भाग में बहुत घना कदंब वन था। वहीं यमुना का जल शांत और गहरा था। इसी जल में कालिया नाग अपने परिवार समेत निवास करता था। पुराणों में कहा गया है कि कालिय नाग ने गरुड़ के भय से समुद्र छोड़ दिया था और यहाँ आकर रहने लगा था।
कहा जाता है कि कालिया इतना विषैला था कि उसके डंसने से तो प्राणी मरते ही थे, उसकी फुँकार से ही यमुना का जल खौल उठता था। उस क्षेत्र में पेड़-पौधे तक सूखने लगे थे। गोप-गोपियाँ बहुत परेशान रहते थे — क्योंकि मवेशियों को पानी पिलाना असंभव हो गया था। यमुना माँ, जो जीवनदायिनी कही जाती हैं, वही कालिया के कारण मृत्यु का कारण बन गई थी।
🔹 बालकृष्ण का खेलते-खेलते नदी तट पहुँचना
एक दिन श्रीकृष्ण अपने ग्वालबाल मित्रों के साथ गायें चरा रहे थे। खेलते-खेलते गेंद यमुना के पास जा गिरी। सब बच्चे डर से ठिठक गए — उन्हें मालूम था कि नदी में कालिया नाग रहता है। पर श्रीकृष्ण तो बाल स्वरूप में भी पूर्ण ब्रह्म हैं — उन्होंने बिना किसी भय के नदी किनारे जाकर गेंद उठाई और बोले,
"जब तक मैं हूँ, कोई किसी से क्यों डरे?"
उन्होंने उसी समय ठान लिया कि आज इस विषधर का अंत करना ही होगा।
🔹 श्रीकृष्ण का यमुना में प्रवेश
श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में यमुना में छलांग लगा दी। जैसे ही उन्होंने जल में प्रवेश किया, कालिय नाग को अपनी शरण में आये अनजाने बालक पर क्रोध आ गया। उसने अपनी विशाल फन फैलाकर श्रीकृष्ण को अपने कुंडलाकार शरीर से जकड़ लिया। जल में बड़ी-बड़ी लहरें उठने लगीं। ग्वालबालों ने यह दृश्य देखा तो डर के मारे गाँव की ओर दौड़ पड़े।
🔹 ब्रजवासियों का विलाप और यशोदा का रोदन
गोकुल में हाहाकार मच गया। नंद बाबा, यशोदा माता और समस्त गोप-गोपियाँ भागकर यमुना किनारे पहुँच गए। यशोदा रो-रोकर कहने लगीं, "हे मेरे लाल! तू कहाँ है? कौन तुझे बचाएगा?" सभी ने देखा कि जल में सिर्फ नाग का विशाल फन लहरों में ऊपर-नीचे हो रहा है, पर कृष्ण कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। ब्रज की गोपियाँ अपने आँचल फैलाकर भगवान से विनती करने लगीं – "हे नारायण! हमारे कान्हा को बचा लो।"
🔹 कालिया नाग पर श्रीकृष्ण का नृत्य
थोड़ी देर बाद जल शांत हुआ और तभी सबने देखा कि श्रीकृष्ण ने कालिया को अपने बल से झटका दिया और उसके फनों पर सवार हो गए। श्रीकृष्ण ने मुरलीधार स्वरूप में मुस्कुराते हुए उस विषधर के फनों पर नृत्य करना प्रारंभ कर दिया। कहते हैं कि जैसे-जैसे प्रभु नृत्य करते, उनके चरणों के स्पर्श से कालिय का अहंकार, क्रोध और विष सब शांत होता गया।
श्रीकृष्ण ने अपने छोटे-छोटे चरणों से उस महाविषधर को ऐसा दंड दिया कि उसकी सारी शक्ति क्षीण हो गई। अंत में थक-हारकर कालिय ने भगवान को नमन किया और अपनी पत्नियों के साथ चरणों में गिर पड़ा। उसने कहा – "प्रभु! मुझे क्षमा करें, मैं अब कभी किसी को कष्ट नहीं दूँगा।"
🔹 कालिया नाग का उद्धार
श्रीकृष्ण ने कालिया को आदेश दिया कि वह तुरंत यमुना छोड़कर समुद्र में लौट जाए। गरुड़ से मित्रता का वचन देकर उसे सुरक्षित मार्ग दिया गया। कालिय नाग ने श्रीकृष्ण की जयकार करते हुए यमुना को छोड़ दिया। गोकुलवासियों ने श्रीकृष्ण को हर्षित होकर ह्रदय से लगा लिया।
यमुना फिर से निर्मल और पवित्र हो गई। सबने देखा कि एक छोटे से बालक ने पूरे गाँव को मृत्यु के भय से मुक्ति दिला दी। यह लीला सदा से भक्तों में विश्वास जगाती है कि भगवान हर विष और भय को नष्ट करने वाले हैं।
🔹 कथा का गहरा संदेश
कालिया नाग लीला का संदेश यही है कि जीवन में जब भी हमारे चारों ओर विष (दुष्ट विचार, अहंकार, लोभ) फैलने लगे, तो श्रीकृष्ण के श्रीचरणों का स्मरण ही उसका नाश कर सकता है। यह लीला प्रेम, साहस और आस्था की अमर प्रतीक है।
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🙏जय श्री कृष्णा!
Jai shree krishna ❤️
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