Putana Vadh Krishna Leela in Hindi – पूतना वध लीला की पूरी कथा

Putana Vadh Krishna Leela in Hindi – पूतना वध लीला की पूरी कथा


नन्हें श्रीकृष्ण पूतना के विशाल शरीर पर मुस्कराते हुए बैठे हैं, पूतना मृत अवस्था में विकराल रूप में भूमि पर पड़ी है


भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश से भरी होती हैं। इन लीलाओं में छिपा होता है धर्म का स्वरूप, प्रेम की गहराई और जीवन के सत्य। उन्हीं दिव्य लीलाओं में से एक है – पूतना वध लीला।

श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में पूतना वध एक ऐसी घटना है, जिसमें बालक रूप में भगवान ने राक्षसी का उद्धार कर दिया। जानिए इस अद्भुत लीला की पूरी कथा।

यह कथा दर्शाती है कि कैसे एक नवजात बालक श्रीकृष्ण, मात्र कुछ दिनों के होते हुए भी, अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना करने निकल पड़ते हैं। पूतना, जो एक राक्षसी थी, कंस के आदेश पर नवजात शिशुओं को मारने का काम करती थी। लेकिन जब वह श्रीकृष्ण को मारने वृंदावन पहुँची – तब प्रारंभ हुई एक ऐसी लीला, जिसने संपूर्ण ब्रह्मांड को चकित कर दिया।



👉श्रीकृष्ण बचपन में पूतना का वध कर रक्षक बनें, और युवावस्था में उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाकर धर्म की रक्षा की। इस दिव्य प्रसंग को पढ़ें: द्रौपदी की लाज बचाने वाली कथा।


पूतना वध कृष्ण लीला की पूरी कथा विस्तार में:

कंस, जो श्रीकृष्ण के जन्म से भयभीत था, उसे मारने के लिए अनेक उपाय कर रहा था। उसने अपनी सहायिका और एक भीषण मायावी राक्षसी पूतना को आदेश दिया कि वह गोकुल जाकर नवजात बालकों को मार डाले। पूतना को माया और रूप बदलने की सिद्धि प्राप्त थी।


पूतना अपने मायावी रूप में अत्यंत सुंदर स्त्री बनकर गोकुल पहुँची।उसके चेहरे पर ऐसी ममता थी कि कोई भी उसे संदेह की दृष्टि से न देखता। गाँव की स्त्रियाँ तो उसे देवी समान समझने लगीं। पूतना सीधे नंदबाबा के घर पहुँची जहाँ यशोदा माँ श्रीकृष्ण को झूले में झुला रही थीं।


पूतना ने आग्रह किया – “बहन! मैं बहुत शुभ समय में आई हूँ। मुझे इसे गोद में लेने दो, मैं आशीर्वाद दूँगी।” यशोदा जी ने सहजता से बालक कृष्ण को उसके हाथों में दे दिया। यशोदा को यह अहसास भी नहीं था कि यह स्त्री कोई साधारण नहीं, बल्कि राक्षसी है।


पूतना ने भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान कराने का प्रयास किया — उसका दूध विषैला था, क्योंकि वह जन्म से ही राक्षसी थी और उसके शरीर में विष प्रवाहित होता था। यह विष सामान्य नहीं, बल्कि ऐसा घातक था कि किसी भी नवजात बालक को पलभर में मृत्यु की गोद में सुला सकता था।


परंतु वह भूल गई थी कि वह सामान्य बालक नहीं, स्वयं परब्रह्म श्रीकृष्ण को अपने हाथों में लिए बैठी है। जैसे ही उसने श्रीकृष्ण को स्तनपान कराना प्रारंभ किया, भगवान ने उसकी माया को ताड़ लिया। उन्होंने उस विषैले दूध को ऐसे खींचना शुरू किया कि केवल दूध ही नहीं, पूतना की प्राणवायु भी बाहर निकलने लगी।


पूतना की साँसें तेज़ हो गईं, चेहरा विकृत होने लगा, आंखें फैल गईं और उसका शरीर कांपने लगा। वह छटपटाने लगी, और अपनी पूरी शक्ति लगाकर कृष्ण को अलग करने का प्रयास करने लगी। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे कसकर पकड़े रखा — जैसे काल ने उसे जकड़ लिया हो। वह गोकुल के बाहर जंगल की ओर दौड़ी, लेकिन श्रीकृष्ण को नहीं हटा सकी।


पूतना श्रीकृष्ण को लेकर जंगल की ओर भाग रही है, पीछे गोकुल के लोग चिल्लाते हुए दौड़ रहे हैं


अब पूतना अपने असली रूप में आ गई — एक भीषण, विकराल और विशालकाय राक्षसी। उसके बाल बिखर गए, नाखून नुकीले हो उठे, और शरीर पर्वत-सा विशाल हो गया। 


अंततः भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी प्राणशक्ति खींच ली। एक तेज गर्जना के साथ वह धरती पर गिरी — उसकी लाश इतनी बड़ी और विकराल थी कि मानो कोई पर्वत धरती पर गिर पड़ा हो। चारों ओर भय फैल गया, स्त्रियाँ चीख पड़ीं, पुरुष चकित रह गए।


सभी स्त्री-पुरुष वहाँ दौड़े आए। लेकिन जो दृश्य उन्होंने देखा, वह किसी को भी दैवी अनुभूति देने के लिए पर्याप्त था। नन्हे श्रीकृष्ण पूतना के विशाल मृत शरीर के ऊपर मुस्कुराते हुए बैठे थे।


उनका चेहरा शांत था, नेत्रों में ममता थी, और मुख पर दिव्य आभा फैल रही थी — मानो बता रहे हों कि “भय नहीं, मैं हूँ”।


माँ यशोदा दौड़कर वहाँ पहुँचीं, उनका ह्रदय काँप उठा। उन्होंने बिना देर किए श्रीकृष्ण को गोद में उठा लिया और ह्रदय से लगा लिया।


गाँव के बुजुर्ग, गोपियाँ और ग्वाले यह देखकर विस्मित और भावविभोर हो उठे। सबने कहा — “यह कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। यह तो स्वयं नारायण हैं, जो पूतना जैसे घातक राक्षसों का भी अंत कर सकते हैं।”



👉भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्यावस्था में ही पूतना जैसे राक्षसी का वध करके अधर्म का अंत किया, और बड़े होकर उन्होंने सच्ची मित्रता का भी उदाहरण दिया। श्रीकृष्ण और सुदामा की अमर मित्रता की कथा यहाँ पढ़े।


पूतना कौन थी? – उसका असली रूप, पूर्व जन्म और उद्देश्य (विस्तार में)

पूतना कोई साधारण राक्षसी नहीं थी। वह एक मायावी, तंत्र-सिद्ध और रूपांतरित होने में पारंगत राक्षसी थी, जो कंस की सेविका थी। उसका उद्देश्य केवल हत्या नहीं था, बल्कि अधर्म को फैलाना और धर्म के बीज को नष्ट करना था।

उसे यह कार्य स्वयं कंस से मिला था, जो श्रीकृष्ण से भयभीत था। कंस जानता था कि एक दिव्य बालक उसका अंत करेगा, इसलिए उसने पूतना को आदेश दिया कि वह गोकुल जाकर सभी नवजात शिशुओं की हत्या करे।


📜 पूतना का पूर्व जन्म:

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पूतना पूर्व जन्म में एक अप्सरा थी, जो स्वर्गलोक में रहती थी। उसने एक बार देवताओं के यज्ञ में विघ्न डाला और भगवान विष्णु का अपमान किया। इस पाप के कारण उसे राक्षसी योनि में जन्म लेना पड़ा।


🧘‍♀️ लेकिन यह भी भाग्य था...

हालाँकि पूतना एक राक्षसी थी, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसके भीतर छिपे मातृत्व भाव को पहचाना। उसने श्रीकृष्ण को विषैला दूध पिलाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन साथ ही उसे गोद में लिया, स्तनपान कराया — और यही भाव मातृत्व की छाया बन गया।


भगवान कृष्ण ने उसके दोष को नहीं, केवल उस क्षणिक मातृत्व भाव को देखा और उसे मुक्ति दे दी। यह सिद्ध करता है कि भगवान भाव को देखते हैं, रूप को नहीं।


पूतना वध कृष्ण लीला हमें सिखाती है कि ईश्वर के संपर्क में आने मात्र से भी मोक्ष संभव है, चाहे व्यक्ति कितना भी पतित क्यों न हो।



पूतना वध का आध्यात्मिक संदेश:

  • भगवान के लिए भक्ति या शत्रुता, दोनों ही मार्ग उद्धार का कारण बनते हैं।
  • पूतना ने विष से मारने का प्रयास किया, परंतु भगवान ने उसे भी मुक्ति दे दी।
  • यह लीला हमें सिखाती है कि दिखावटी ममता नहीं, केवल निष्कलंक भाव ही भगवान को प्रिय है।



श्रीकृष्ण की यह लीला हमें क्या सिखाती है?

  • जीवन में चाहे जितना भी अंधकार हो, अगर विश्वास और भक्ति है, तो असत्य पर सत्य की विजय निश्चित है।
  • भगवान अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं, चाहे वह बालरूप में ही क्यों न हों।
  • यह कथा माता-पिता को भी सिखाती है कि हर मुस्कराहट के पीछे छिपा हुआ खतरा समझना जरूरी है – और ईश्वर की कृपा से ही संतान सुरक्षित रहती है।



👉पूतना वध के बाद आप इन प्रेरणादायक ‘Shri Krishna Good Morning’ उद्धरणों के ज़रिए दिन की शुरुआत कर सकते हैं – पढ़ें यहां।

 

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