भगवद गीता अध्याय 2: सांख्य योग | Bhagavad Gita Chapter 2 in Hindi – Sankhya Yog
भगवद गीता अध्याय 2: सांख्य योग | Bhagavad Gita Chapter 2 in Hindi – Sankhya Yog
🕉️ प्रस्तावना:
भगवद गीता का दूसरा अध्याय ‘सांख्य योग’ नाम से जाना जाता है और यह पूरे ग्रंथ का मूल आधार माना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उस समय मार्गदर्शन देते हैं जब वह युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों को लेकर भ्रमित, दुखी और मानसिक रूप से विचलित होता है। यह अध्याय सिर्फ युद्ध की बात नहीं करता, बल्कि मानव जीवन, आत्मा, धर्म, कर्म और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को विस्तार से समझाता है।
यह पोस्ट उन सभी पाठकों के लिए उपयोगी है जो गीता के ज्ञान को गहराई से समझना चाहते हैं। इस अध्याय के माध्यम से श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं:
🔹 आत्मा (soul) का वास्तविक स्वरूप क्या है
🔹 मनुष्य का सच्चा कर्तव्य क्या है
🔹 निष्काम कर्म (Karma without attachment) का सिद्धांत
🔹 स्थितप्रज्ञ (एक संतुलित बुद्धि वाला ज्ञानी) कौन होता है
🔹 जीवन में दुख-सुख, जय-पराजय, लाभ-हानि को समान भाव से देखने की कला
🔹 मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग
🔹 ज्ञान और भक्ति में संतुलन
इस पोस्ट में आप जानेंगे:
अर्जुन की मानसिक स्थिति और उसके प्रश्न
श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा की व्याख्या
कर्मयोग का महत्व
स्थितप्रज्ञ पुरुष के लक्षण
जीवन को कर्मयोग के माध्यम से कैसे जिया जाए
अध्यात्म और सांसारिक जीवन का संतुलन
यह अध्याय कुल 72 श्लोक का है, लेकिन इसके प्रत्येक श्लोक में जीवन का अमूल्य ज्ञान समाहित है। हम इस पोस्ट में इन श्लोकों को सरल हिंदी अर्थ सहित विस्तार से प्रस्तुत करेंगे (अगले सेक्शन में)। अभी के लिए, चलिए इस अध्याय की गहराई को समझते हैं।
👉यदि आपने पहले अध्याय का अध्ययन नहीं किया है, तो पहले भगवद गीता अध्याय 1 – अर्जुन विषाद योग पढ़ें।
🕉️ भगवद गीता अध्याय 2 – सांख्य योग (श्लोक 1 से 72)
📜 श्लोक 1
सञ्जय उवाच |
तं तथा कृपयाविष्टम् अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |
विषीदन्तम् इदं वाक्यम् उवाच मधुसूदनः ॥1॥
हिंदी अर्थ:
संजय बोले – करुणा से अभिभूत, आंसुओं से भरी आँखों वाला, शोक में डूबा हुआ अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने यह वचन कहा।
📜 श्लोक 2
श्रीभगवानुवाच |
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |
अनार्यजुष्टम् अस्वर्ग्यम अकीर्तिकरम अर्जुन ॥2॥
हिंदी अर्थ:
भगवान बोले – हे अर्जुन! यह मोह तुम्हें इस कठिन समय में कैसे घेर रहा है? यह आर्य (श्रेष्ठ पुरुषों) के योग्य नहीं है, न स्वर्ग दिलाने वाला है, और न ही कीर्ति देने वाला।
📜 श्लोक 3
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥3॥
हिंदी अर्थ:
हे पार्थ! कायरता को मत अपनाओ, यह तुम्हारे योग्य नहीं है। हृदय की दुर्बलता को त्यागकर उठ खड़े हो और अपने शत्रुओं का सामना करो।
📜 श्लोक 4
अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभिः प्रति योत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥4॥
हिंदी अर्थ:
अर्जुन बोले – हे मधुसूदन! मैं युद्ध में भीष्म और द्रोण जैसे पूज्य गुरुओं पर बाण कैसे चला सकता हूँ?
📜 श्लोक 5
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ॥5॥
हिंदी अर्थ:
इन महान आत्माओं (गुरुओं) को मारकर, उनके खून से सने हुए सुखों का भोग करना पाप है। भिक्षा मांगकर जीवन यापन करना इससे श्रेष्ठ है।
📜 श्लोक 6
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः |
यानेव हत्वा न जिजीविषाम
स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥6॥
हिंदी अर्थ:
हमें यह भी ज्ञात नहीं कि क्या अधिक श्रेष्ठ है – हम युद्ध जीतें या हारें। वे धृतराष्ट्र के पुत्र जिनको मारकर भी हम जीना नहीं चाहते, वे सामने खड़े हैं।
📜 श्लोक 7
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥7॥
हिंदी अर्थ:
मैं कायरता से अभिभूत होकर अपने कर्तव्य से भ्रमित हो गया हूँ। अब मैं आपका शिष्य हूँ, मुझे स्पष्ट रूप से बताइए कि मेरे लिए क्या श्रेष्ठ है। मुझे उपदेश दीजिए।
📜 श्लोक 8
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्यात्
यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् |
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥8॥
हिंदी अर्थ:
मैं ऐसा कोई उपाय नहीं देखता जो इस शोक को दूर कर सके जो मेरी इंद्रियों को सुखा रहा है, भले ही मैं इस धरती पर निर्विवाद राज्य या देवताओं का स्वामी बन जाऊँ।
📜 श्लोक 9
सञ्जय उवाच |
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप |
न योत्स्य इति गोविन्दम् उक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥9॥
हिंदी अर्थ:
संजय बोले – इस प्रकार कहकर अर्जुन युद्ध करने से इंकार करते हुए चुप हो गया।
📜 श्लोक 10
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत |
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥10॥
हिंदी अर्थ:
हे भारत (धृतराष्ट्र)! सेनाओं के बीच खड़े, शोक में डूबे हुए अर्जुन से हृषीकेश (श्रीकृष्ण) मुस्कुराते हुए बोले।
📜 श्लोक 11
श्रीभगवानुवाच:
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥11॥
हिंदी अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण बोले – तुम जिनके लिए शोक कर रहे हो, वे शोक के योग्य नहीं हैं, फिर भी तुम ज्ञान की बातें कर रहे हो। ज्ञानी पुरुष ना तो जीवित और ना ही मृत लोगों के लिए शोक करते हैं।
📜 श्लोक 12
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः |
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥12॥
हिंदी अर्थ:
न तो कभी ऐसा समय था जब मैं नहीं था, न तुम थे, और न ही ये राजा थे; और न ही आगे ऐसा समय आएगा जब हम सभी नहीं होंगे।
📜 श्लोक 13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥
हिंदी अर्थ:
जैसे इस शरीर में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था आती है, वैसे ही आत्मा दूसरे शरीर को प्राप्त करती है; ज्ञानी पुरुष इस परिवर्तन से मोहित नहीं होते।
📜 श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुखदाः |
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥14॥
हिंदी अर्थ:
हे अर्जुन! सर्दी-गर्मी, सुख-दुख इन्द्रियों के संपर्क से उत्पन्न होते हैं, ये नित्य नहीं हैं। इन्हें सहन करना सीखो।
📜 श्लोक 15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ |
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥15॥
हिंदी अर्थ:
जो पुरुष इन सुख-दुख से विचलित नहीं होता और समभाव में स्थित रहता है, वही अमरत्व (मोक्ष) के योग्य होता है।
📜 श्लोक 16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः |
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥16॥
हिंदी अर्थ:
असत्य (जो अस्तित्व में नहीं है) का कोई अस्तित्व नहीं होता, और सत्य (जो शाश्वत है) का कभी अभाव नहीं होता; यह विवेक ज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है।
📜 श्लोक 17
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् |
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥17॥
हिंदी अर्थ:
जान लो कि वह आत्मा अविनाशी है जिससे यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त है। इस अविनाशी आत्मा का नाश कोई नहीं कर सकता।
📜 श्लोक 18
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः |
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥18॥
हिंदी अर्थ:
इन शरीरों का अंत निश्चित है, लेकिन इन शरीरों में स्थित आत्मा नित्य, अविनाशी और अज्ञेय है। इसलिए, हे भारत (अर्जुन), तुम युद्ध करो।
📜 श्लोक 19
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥19॥
हिंदी अर्थ:
जो आत्मा को मारने वाला समझता है या मारा हुआ समझता है, वह दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न तो मारती है और न ही मारी जाती है।
📜 श्लोक 20
न जायते म्रियते वा कदाचि
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥20॥
हिंदी अर्थ:
आत्मा न कभी जन्म लेती है, न ही मरती है। न यह पहले उत्पन्न हुई थी और न ही भविष्य में होगी। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश होने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता।
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📜 श्लोक 21
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् |
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥21॥
हिंदी अर्थ:
जो आत्मा को अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अचल जानता है, वह किसी को कैसे मार सकता है या मरवा सकता है, हे पार्थ?
📜 श्लोक 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यानि संयाति नवानि देही ॥22॥
हिंदी अर्थ:
जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को त्यागकर नए धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
📜 श्लोक 23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥23॥
हिंदी अर्थ:
इस आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न ही अग्नि जला सकती है; न जल इसे भिगो सकता है, और न ही वायु सुखा सकती है।
📜 श्लोक 24
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥24॥
हिंदी अर्थ:
यह आत्मा अविनाशी, अग्नि से न जलने वाली, जल से न भीगने वाली, वायु से न सुखने वाली है। यह नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर और सनातन है।
📜 श्लोक 25
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते |
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥25॥
हिंदी अर्थ:
यह आत्मा अव्यक्त, अचिंत्य और अविकार स्वरूप है, इसलिए इसे जानकर शोक नहीं करना चाहिए।
📜 श्लोक 26
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् |
तथापि त्वं महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसि ॥26॥
हिंदी अर्थ:
यदि तुम इसे बार-बार जन्म लेने वाला या हमेशा मरने वाला मानो, तब भी तुम्हें इसके लिए शोक नहीं करना चाहिए।
📜 श्लोक 27
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27॥
हिंदी अर्थ:
जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है, और मृत्यु के बाद जन्म भी निश्चित है। इसलिए जो टाला नहीं जा सकता, उस पर शोक नहीं करना चाहिए।
📜 श्लोक 28
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत |
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥28॥
हिंदी अर्थ:
हे भारत! सभी प्राणी जन्म से पहले अव्यक्त होते हैं, बीच में प्रकट होते हैं और मृत्यु के बाद फिर अव्यक्त हो जाते हैं – फिर शोक किस बात का?
📜 श्लोक 29
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः |
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥29॥
हिंदी अर्थ:
कोई आत्मा को आश्चर्य की तरह देखता है, कोई आश्चर्य की तरह उसका वर्णन करता है, कोई आश्चर्य की तरह सुनता है – लेकिन कोई भी वास्तव में उसे समझ नहीं पाता।
📜 श्लोक 30
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत |
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥30॥
हिंदी अर्थ:
हे भारत! यह आत्मा हर शरीर में नित्य और अवध्य है। इसलिए सभी प्राणियों के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
📜 श्लोक 31
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥31॥
हिंदी अर्थ:
अपने धर्म को देखकर तुम्हें विचलित नहीं होना चाहिए। क्योंकि धर्मयुक्त युद्ध से श्रेष्ठ कार्य क्षत्रिय के लिए कोई और नहीं होता।
📜 श्लोक 32
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् |
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥32॥
हिंदी अर्थ:
ऐसा युद्ध जो स्वयं ही मिल गया है और जो स्वर्ग के द्वार खोलता है, उसे पाकर क्षत्रिय धन्य होते हैं।
📜 श्लोक 33
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥33॥
हिंदी अर्थ:
यदि तुम इस धर्मयुक्त युद्ध से पीछे हटते हो तो अपने धर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त करोगे।
📜 श्लोक 34
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् |
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥34॥
हिंदी अर्थ:
लोग तुम्हारी निंदा करेंगे, और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी होती है।
📜 श्लोक 35
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः |
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥35॥
हिंदी अर्थ:
महान योद्धा सोचेंगे कि तुम डर के कारण युद्ध छोड़कर भागे हो, और वे जो तुम्हें सम्मान देते थे, अब तुम्हें तुच्छ समझेंगे।
📜 श्लोक 36
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः |
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ॥36॥
हिंदी अर्थ:
तुम्हारे शत्रु तुम्हारी निंदा में बहुत कुछ अनुचित बातें कहेंगे। तुम्हारी निंदा तुम्हारे लिए बहुत दुःखदायी होगी।
📜 श्लोक 37
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् |
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥37॥
हिंदी अर्थ:
यदि तुम युद्ध में मारे गए, तो स्वर्ग को पाओगे, और यदि जीते, तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे। इसलिए, हे कौन्तेय! युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।
📜 श्लोक 38
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ |
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥38॥
हिंदी अर्थ:
सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान मानकर युद्ध करो। इस प्रकार युद्ध करने से तुम पाप को प्राप्त नहीं करोगे।
📜 श्लोक 39
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु |
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥39॥
हिंदी अर्थ:
अब तक जो ज्ञान सांख्य (ज्ञानयोग) के अनुसार बताया गया, अब योग की बुद्धि सुनो। हे पार्थ! उस बुद्धि से युक्त होकर तुम कर्म के बंधन से मुक्त हो जाओगे।
📜 श्लोक 40
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥40॥
हिंदी अर्थ:
इस योग में कोई भी प्रयास व्यर्थ नहीं जाता, और इसका कोई दोष नहीं होता। थोड़ा सा भी यह धर्म (कर्मयोग) महान भय से रक्षा करता है।
📜 श्लोक 41
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥41॥
हिंदी अर्थ:
हे कुरुनन्दन! इस मार्ग में एकनिष्ठ बुद्धि (निश्चित लक्ष्य वाली) ही श्रेष्ठ है, जबकि अनिश्चित बुद्धि वाले लोगों की बुद्धि अनेक शाखाओं में बँटी होती है।
📜 श्लोक 42
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः |
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥42॥
हिंदी अर्थ:
हे पार्थ! अल्प बुद्धि वाले वेदों की फूल जैसी मीठी वाणी में रत रहते हैं और यह मानते हैं कि इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है।
📜 श्लोक 43
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् |
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥43॥
हिंदी अर्थ:
ऐसे लोग कामना से प्रेरित होते हैं, स्वर्ग की इच्छा रखते हैं, और वेदों को केवल भोग व ऐश्वर्य की प्राप्ति का साधन मानते हैं।
📜 श्लोक 44
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् |
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥44॥
हिंदी अर्थ:
जो लोग भोग और ऐश्वर्य में आसक्त रहते हैं, उनकी बुद्धि चुराई गई होती है। ऐसी चित्तवृत्ति वालों की स्थिर बुद्धि समाधि में नहीं लगती।
📜 श्लोक 45
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥45॥
हिंदी अर्थ:
वेद तीन गुणों (सत्, रज, तम) से संबंधित हैं; हे अर्जुन! तू इनसे परे हो जा, द्वन्द्वों से रहित, सदा शुद्धसत्व में स्थित, संग्रह और सुरक्षा की चिंता से मुक्त, और आत्मस्वरूप में स्थित हो।
📜 श्लोक 46
यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके |
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥46॥
हिंदी अर्थ:
जैसे एक छोटे कुएं का उपयोग तब नहीं रह जाता जब चारों ओर जल से भरा हुआ जलाशय हो, वैसे ही ज्ञानी ब्राह्मण के लिए वेदों की आवश्यकता नहीं रह जाती।
📜 श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥47॥
हिंदी अर्थ:
तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फलों में नहीं। तू कर्मफल का कारण मत बन, और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।
📜 श्लोक 48
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥48॥
हिंदी अर्थ:
हे धनंजय! आसक्ति को त्यागकर योग में स्थित होकर कर्म कर। सफलता और असफलता में सम रहने को ही योग कहते हैं।
📜 श्लोक 49
दूरेण ह्यवर्मं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥49॥
हिंदी अर्थ:
हे धनंजय! बुद्धियोग से युक्त कर्म, फल की इच्छा वाले कर्मों की तुलना में बहुत श्रेष्ठ है। फल की आशा करने वाले लोग दरिद्र होते हैं।
📜 श्लोक 50
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥50॥
हिंदी अर्थ:
बुद्धियोग से युक्त मनुष्य इस जीवन में ही पुण्य और पाप दोनों को त्याग देता है। इसलिए योग में स्थिर हो जा, क्योंकि योग ही कर्म में कौशल है।
📜 श्लोक 51
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः |
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥51॥
हिंदी अर्थ:
बुद्धियोग से युक्त ज्ञानी जन, कर्म के फलों को त्यागकर जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर परम शांति को प्राप्त करते हैं।
📜 श्लोक 52
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥52॥
हिंदी अर्थ:
जब तुम्हारी बुद्धि मोह के दलदल को पार कर जाएगी, तब तुम सुनी और सुनने योग्य सब बातों से उदासीन हो जाओगे।
📜 श्लोक 53
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥53॥
हिंदी अर्थ:
जब तुम्हारी बुद्धि शास्त्रों की उलझनों से हटकर अडिग और स्थिर हो जाएगी, तब ही तुम सच्चे योग को प्राप्त कर सकोगे।
📜 श्लोक 54
अर्जुन उवाच |
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥54॥
हिंदी अर्थ:
अर्जुन ने पूछा – हे केशव! स्थिरबुद्धि (स्थितप्रज्ञ) पुरुष की पहचान क्या है? वह किस प्रकार बोलता है, बैठता है और चलता है?
📜 श्लोक 55
श्रीभगवानुवाच |
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥55॥
हिंदी अर्थ:
भगवान ने कहा – हे पार्थ! जब मनुष्य मन में उठने वाली सभी इच्छाओं को त्याग देता है और आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है।
📜 श्लोक 56
दुःखेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृहः |
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥56॥
हिंदी अर्थ:
जो व्यक्ति दुःख में विचलित नहीं होता, सुख में आसक्त नहीं होता, और राग, भय, तथा क्रोध से रहित है – वह स्थितबुद्धि मुनि कहलाता है।
📜 श्लोक 57
यसर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥57॥
हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य हर वस्तु में आसक्त नहीं होता, शुभ या अशुभ मिलने पर न प्रसन्न होता है, न द्वेष करता है – उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
📜 श्लोक 58
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥58॥
हिंदी अर्थ:
जैसे कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है, वैसे ही जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को विषयों से रोक लेता है – उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
📜 श्लोक 59
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः |
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥59॥
हिंदी अर्थ:
इन्द्रियविहीन व्यक्ति के विषय तो दूर हो सकते हैं, लेकिन उनमें रुचि बनी रहती है। जब वह परम को अनुभव करता है, तब वह रुचि भी समाप्त हो जाती है।
📜 श्लोक 60
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः |
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥60॥
हिंदी अर्थ:
हे कौन्तेय! बुद्धिमान पुरुष के लिए भी इन्द्रियाँ बलपूर्वक उसका मन खींच लेती हैं, चाहे वह कितना भी संयमित क्यों न हो।
📜 श्लोक 61
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः |
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥61॥
हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य सभी इन्द्रियों को वश में रखकर भगवान में स्थित रहता है, उसकी बुद्धि स्थिर और अचल मानी जाती है।
📜 श्लोक 62
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते |
सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥62॥
हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य विषयों का चिन्तन करता है, उसमें उन विषयों के प्रति आसक्ति उत्पन्न होती है; आसक्ति से कामना, और कामना से क्रोध जन्म लेता है।
📜 श्लोक 63
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥63॥
हिंदी अर्थ:
क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रंश होता है, स्मृति भ्रंश से बुद्धि का नाश होता है, और बुद्धि के नाश से व्यक्ति का विनाश हो जाता है।
📜 श्लोक 64
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् |
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥64॥
हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य राग और द्वेष से रहित होकर विषयों का सेवन इन्द्रियों द्वारा करता है, और जिसकी आत्मा वश में है, वह प्रसन्नता को प्राप्त करता है।
📜 श्लोक 65
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते |
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥65॥
हिंदी अर्थ:
जब मन प्रसन्न होता है, तब उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं और प्रसन्न चित्त वाले की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है।
📜 श्लोक 66
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥66॥
हिंदी अर्थ:
जिसका मन संयमित नहीं है, उसकी बुद्धि स्थिर नहीं हो सकती, न ही वह ध्यान कर सकता है। ऐसा व्यक्ति न तो शांति पाता है, न ही सुख।
📜 श्लोक 67
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते |
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥67॥
हिंदी अर्थ:
जैसे तेज हवा जल में नाव को बहा ले जाती है, वैसे ही चंचल इन्द्रियों के पीछे मन के लगने से व्यक्ति की बुद्धि छिन जाती है।
📜 श्लोक 68
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥68॥
हिंदी अर्थ:
इसलिए हे महाबाहो! जिसकी इन्द्रियाँ विषयों से पूरी तरह संयमित हैं, उसकी बुद्धि स्थिर मानी जाती है।
📜 श्लोक 69
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥69॥
हिंदी अर्थ:
जो रात सब प्राणियों के लिए होती है, उसमें संयमी पुरुष जागता है; और जो जागरण का समय दूसरों के लिए है, वह ज्ञानी मुनि के लिए रात के समान है।
📜 श्लोक 70
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रं आपः प्रविशन्ति यद्वत् |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥70॥
हिंदी अर्थ:
जैसे नदियाँ समुद्र में जाकर उसमें विलीन हो जाती हैं और समुद्र स्थिर रहता है, वैसे ही जो पुरुष सभी इच्छाओं को अपने भीतर समाहित कर लेता है, वह ही शांति को प्राप्त करता है – इच्छाओं में लिप्त रहने वाला नहीं।
📜 श्लोक 71
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः |
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥71॥
हिंदी अर्थ:
जो व्यक्ति सभी इच्छाओं को त्याग देता है, जो निःस्पृह, निरहंकारी और ममता रहित होकर जीवन व्यतीत करता है – वही सच्ची शांति को प्राप्त करता है।
📜 श्लोक 72
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति |
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥72॥
हिंदी अर्थ:
हे पार्थ! यह ब्राह्मी स्थिति (ईश्वर-स्थित अवस्था) है। जो इसे प्राप्त करता है, वह मोह से मुक्त हो जाता है। और जो अंत समय में भी इसमें स्थित रहता है, वह ब्रह्म-निर्वाण को प्राप्त करता है।
👉श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप और उनके गुणों को महसूस करने के लिए अच्युतम केशवम भजन के बोल पढ़ें, जो गीता के उपदेशों को भक्ति भाव से जोड़ता है।
निष्कर्ष:
भगवद गीता का दूसरा अध्याय हमें यह सिखाता है कि मनुष्य को परिस्थितियों से हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर अडिग रहकर आत्मा की अमरता को समझते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। श्रीकृष्ण हमें बताते हैं कि असली योद्धा वही है जो आत्मज्ञान, संयम और निष्काम कर्म से जीवन का नेतृत्व करता है।
जो भी साधक या जिज्ञासु व्यक्ति इस अध्याय के ज्ञान को अपने जीवन में उतार लेता है, वह जीवन की उलझनों, मोह-माया और भय से ऊपर उठकर सच्चे अर्थों में शांति और मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
radhe radhe
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